मंगलवार, 8 दिसंबर 2020

MOTIMAHAL
























































 ःःःःः मोतीमहल :ःःःः

सन् 1827 में निर्मित एशिया की सबसे विशाल और खूबसूरत इमारत का खिताब प्राप्त मोतीमहल सिंधिया राजवंश का राजमहल था, जहाॅ से उनका राजपाठ चलता था। इस विशाल इमारत में लगभग 1200 कमरे बने हुए हैं। इनमें दरबार हाल दीवाने आम व दीवाने खास को विशेष रूप से बनाया गया है और इनमें अनेक कलाकृतियां चित्रों के माध्यम से कमरों को सजाया गया है जिसमें सोने का उपयोग भी किया गया है।

ग्वालियर चंबल और मालवा को मिलाकर 18 मई 1938 को मध्य भारत प्रान्त का गठन हुआ किया गया था। शरद ऋतु में ग्वालियर एवं ग्रीष्म ऋतु में इंदौर मध्य भारत प्रान्त की राजधानी हुआ करती थी। मोतीमहल में दरबार हाॅल मंे विधान-सभा लगती थी, दरबार हाॅल से सिंधिया शासक अपना शासन चलाया करते थे।

मोतीमहल महाराष्ट्र स्थित पूना के पेशबा महल की तरह बनाया गया था। इसकी छत व दीवारों पर कई किलो सोना लगा हुआ है। इन कमरों में राग-रागिनी की पेटिंग बनी है, जब मध्य प्रदेश राज्य का पुर्नगठन हुआ तो इस महल में लगभग 300 सरकारी कार्यालय लगते थे जिनमें से अभी कुछ शेष रह गये हैं। मोतीमहल में ग्वालियर जिले के कमीश्नर का कार्यालय था जिसमें एयर कंडीश्नर में विस्फोट होने पर यह इमारत क्षतिग्रस्त हो गई थी और छत में लगा सोने का प्लास्टर निकल गया बाद में म.प्र. पुरातत्व विभाग द्वारा इसे आधिपत्य में लिया गया और लगभग दो करोड़ रूपये व्यय कर दरबार हाॅल दीवाने खास की छत का पुनर्निर्माण करवाया गया।

दरबार हाॅल में बेल्जियम का 7.50 टन का झाड़ फन्नुस लगा हुआ है, छत पर सोने की नक्कासी है उसको देखने के लिए झाड फन्नुस के नीचे एक बड़ी कांच की टेबिल लगाई गई है, जिससे चारों ओर दीवार व छत का दृश्य दिखाई देता है। दरबार हाॅल में दोनों ओर महिलाओं के बैठने के लिए और राज व्यवस्था देखने समझने के लिए दो झरोखेंनुमा कमरे बने हुए हैं।

मोतीमहल में बीचों-बीच दरबार हाॅल दीवाने आम व खास बना हुआ है, इसके दोनों ओर गुम्बदनुमा तीन मंजिला इमारत है। मुख्य द्वार पर पत्थर से नक्कासी की गई है। दरबार हाॅल के सामने राधाकृष्ण की भव्य सुंदर पेटिंग है तथा अनेक आईने सुरक्षा की दृष्टि से लगाये गये हैं, जिससे राजदरबार हाॅल की निगरानी की जा सकती है। 

दरबार हाॅल में जाने के लिए जो मेहमानों का कमरा बना है उसमें दोनों ओर पानी के फुब्बारे लगे हैं, छत भी नक्कासीदार है, खिड़कियों पर कांच की पेटिंग लगी हुई है। दरबार हाॅल के बाहर गोल गुम्बद हैं, जो नक्काशीदार मीनारों पर खडे हुए हैं और उसको भव्यता प्रदान करते हैं।

ग्वालियर रियासत में 22 रियासतों का विलय कर मध्य प्रांत बनाया गया था, इस रियासत के प्रमुख ग्वालियर के महाराज जीवाजीराव थे तथा उपप्रमुख इंदौर में महाराजा होलकर थे। श्री गोपीकृष्ण विजयवर्गीय इसके पहले मुख्यमंत्री थे, जिन्हें जवाहर लाल नेहरू के द्वारा शपथ दिलाई गई थी।

  मध्य प्रदेश राज्य की स्थापना के समय 1956 में इसे मध्य प्रदेश की राजधानी बनाये जाने के काफी प्रयास किये गये किन्तु राजधानी न बनाकर इसके महत्व को देखते हुए आबकारी, परिवहन, भू-अभिलेख, कमीश्नरी, नारकोटिक्स, ओडिट आदि विभाग के मुख्य कार्यालय यहां पर कार्यरत हैं, जिनकी ग्वालियर में स्थापना की गई थी। 

सन् 1827 में मोतमहल में तीन लिफ्ट लगी थी जो बिजली की मोटर से चलती थी और वे आज भी मौजद हैं। मोतीमहल का निर्माण अंग्रेज वास्तु कार्य के मार्गदर्शन में किया गया था, उस समय इसके निर्माण पर लगभग चार करोड़ रूपये व्यय हुआ था।

इस महल में राग भैरव और उसकी तीन रागिनी समेत 6 रागों की पेटिंग बनी हुई हैं इनमें प्रमुख गुजरी राग की पेटिंग है जिसमें मानसिंह की महारानी मृगनयनी जो कि नरवर तहसील की थी और मानसिंह को उनके भैंस चराते समय भैंस से मुकाबला करते देख प्यार हो गया था, उसी दृश्य को गुजरी राग में मृगनयनी की पेटिंग के साथ दर्शया गया है। इसके अलावा अनेक राग-रागिनियों की पेटिंग दर्शाई गई है। संगीता सम्राट तानसेन के द्वारा ध्रुपद राग में जिन रागों की उत्पत्ति की गई थी उन रागों को भी कला दीर्धा में दर्शाया गया है।

इस हाॅल में पूरे ग्वालियर को चित्रित करते हुए पेंटिंग बनाई गई है। जिसमें किले पर स्थित इमारत, सहस्त्रबाहू का मंदिर, तेली का मंदिर, गुरूद्वारा, मानसिंह पैलेस आदि इमारतों को दर्शाया गये हैं। 

फूलबाग स्थित मोती मस्जिद, गोपाल मंदिर व अन्य इमारतों को दर्शाया गया है, ग्वालियर में जो मेला लगता था उसको भी दर्शाया गया है और इस बात का ध्यान रखा गया है कि फूलबाग में जहाॅ पर बेर वाली बैठती थी उस स्थान को भी दिखाया गया है, कुछ विदेशी मेला देखने आते थे उन विदेशियों को भी चित्रित किया गया हैं

पेंटिंग में सिंधिया महल एवं सिंधिया परिवार के राजा को दशहरे में जहाॅ शमी वृक्ष का पूजन करने जाते हैं उस स्थान को दर्शाया गया है। सिंधिया राजवंश के राजाओं को शिकार करते भी दर्शाया गया है, पेंटिंग में  एक व्यक्ति शिकार की ओर ईशारा कर रहा है दूसरा सिपाही बंदूक के लिए गोली दे रहा है और राजा शिकार कर बंदूक चलाते हुए दिखाई दे रहे हैं।

चित्रवाले कमरे में जैसे ही घुसते है एक बड़ा सा चित्र दिखाई देता है जिसमें शेर का शिकार करते हुए राजा को दिखाया गया है इसमें हरकारे और अन्य व्यक्तियों को हाॅका लगाते हुए शेर को घेरकर शिकार की ओर ले जाते दिखाया गया है।

जितनी भी पेटिंग बनी है सारी पेटिंग दुनिया की महान पेटिंग ’’शुक्र का जन्म पोर्टेट आॅफ मेडम द क्रियेशन आॅफ एडम द लास्ट समर’’ से कम नहीं है और विशेषकर ग्वालियर शहर की पेटिंग विश्व प्रसिद्ध पेंटिंग में शामिल होने लगी है।

10. दीवाने खास में सिंधिया राजवंश की तीन फुट की धार्मिक प्रवृति की चिंकू रानी को भगवान श्रीकृष्ण के साथ आराधना करते हुए बड़ी पेटिंग लगी हुई है। यह पेटिंग देखने में अलौकिक व सौन्दर्य से परिपूर्ण है। 

इसी हाॅल में राजस्थान के सीकर जिले से लाये गये मुगले-आजम फिल्म में प्रयोग किये गये उन कांच के टुकडों को लगया गया है जिनके टूटने पर केवल चेहरा दिखाई देता है शरीर के अंग दिखाई नहीं देते। इसके अलावा इस कमरे में चारों ओर सोने की नक्कासी की गई है। 

भगवान श्रीकृष्ण की प्रतिमा कांच से बनाई गई हैं जिसमें भगवान श्रीकृष्ण को सिंधिया राजवंश की टोपी पहने दर्शाया गय है। यह माना जाता है कि राजमाता सिंधिया भगवान श्रीकृष्ण की अन्नय भक्त थी और भगवान श्रीकृष्ण सम्प्रदाय को मानती थी इसलिए भगवान श्रीकृष्ण को सिंधिया राजवंश की टोपी में उन्हें बाल एवं युवा रूप में दिखाया गया है। 

इसी कमरे में दो बड़े बेल्जियम आयतित आईने दो छोटे आईने दीवारों के आमने सामने इस उद्देश्य से लगाये हैं कि छत की छबि इन आईनों से दिखाई दे।

दीवाने आम से लगा हुआ एक कमरा है जिसमें भगवान श्रीकृष्ण, राम एवं अन्य देवी देवताओं की पेंटिग ग्वालियर के चितेरा आर्ट से निर्मित की गई है। जिसमें सोने का उपयोग किया गया है और ये समस्त कलाकृतियां अपने आप में सर्वश्रेष्ठ हैं जिनकी तुलना नहीं की जा सकती।

इसी कमरे में दो रोशनदान प्राकृतिक हवा, रोशनी, प्राप्त करने के लिए छत पर बने हैं और कमरे की खिडकियों में शानदार कांच की कटिंग वर्क के बेल्जियम कांच लगे हुए हैं जिनसे लाल, पीली, नीली रोशनी हाॅल में छन कर आती है और सुंदरता प्रदान करती है।

मोतीमहल के प्रवेश द्वार में फुब्बारे लगे हुए है चारांे और नक्कासी है तड़िक चालक आज भी मौजूद है। इसकी छत पर से सम्पूर्ण ग्वालियर दिखाई देता है। बैजाताल, इटालियन गार्डन, महारानी लक्ष्मीबाई कला एवं वाणिज्य महाविद्यालय जिसमें देश के तत्कालीन प्रधानमंत्री स्व. अटल बिहारी वाजपेयी जी ने अध्ययन किया है, वे भी मोतीमहल से दिखाई देते हैं। माती महल ग्वालियर के बीचो-बीच स्थित दुनिया की सुंदर इमारतों में से एक इमारत है, जो अतीत के भैभव और सम्पन्नता की कहानी कहती है।


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