मंगलवार, 8 दिसंबर 2020

devbalda ka shivmandir



































































































































 ःःःःः देवबल्ड़ा का शिवमंदिर:ःःःः

सिहोर जिले की आष्टा तहसील में मेवज नदी के उद्गत स्थल देवबल्डा में 12वी, 13वी शताब्दी के परमार कालीन शिव मंदिर का जीर्णोद्वार मध्य प्रदेश पुरातत्व विभाग के द्वारा करवाया गय है।

यह मंदिर जमीन से लगभग 35 फुट ऊॅचा है। यह शिव मंदिर नागर शैली में बना है जिसके बीचो-बीच शिवलिंग हैं। मंदिर की तीन दीवारों में गजासुर, भगवान विष्णु और भूतनाथ की मूर्तियां लगी हुई हैं। इस देवबल्ड़ी स्थित शिव मंदिर के पास एक पुराना परमार कालीन विष्णु मंदिर भी है जिसमें भगवान विष्णु व लक्ष्मीजी को पुरूष अवतारी गरूड देवता के साथ दर्शाया गया है यहां पर दो बावड़ी बनी हुई हैं जिसमें से एक बावडी में से नेवज नदी जो राजगढ में बहती है उसका उद्गम स्थल है। 

देवबल्डा मंदिर के पास पुरातत्व अवशेष बड़ी संख्या में बिखरे हुए हैं। शिव मंदिर से लगे हुआ विष्णु मंदिर है जिसका जीर्णोद्वार किया जा रहा है यहाॅ पर अनेक विलक्षण प्रतिमा है जिनमें 10भुजादारी भगवान शंकर, की गजासुर वध की प्रतिमा है एक प्रतिमा में ब्रहमाजी, सरस्वती और बाघार्थ देवी है। कुछ मैथुनरत् प्रतिमायें हैं जिनके बारे में कहा जाता है कि मूर्तियां खंड़ित किये जाने पर और गाॅव में चोरी, डांका, लूट किये जाने पर उसके परिवार वालों के साथ इस प्रकार का व्यवहार किया जायेगा ऐसी मान्यता थी। इसके अलावा पहले गाली और कसम का प्रचलन था। जिसका अर्थ यह है कि जो कोई निर्माण कार्य को तोड़ेगा वह हानि प्राप्त करेगा। यहां पर गधे पशु का हस्ते हुए एक दुर्लभ चित्र है, क्योंकि केवल मनुष्य को हस्ते हुए देखा जा सकता है। 

कुण्ड के पास भगवान श्री गणेश की प्रतिमा है और पंचमुखी महादेव की तीन पिंडिया रखी हुई हैं, ऐसी मान्यता है कि लोहे का शिवलिंग मूल मंदिर में था जिसमें ऊंगली से चुटकी मारने पर ऊॅ की टंकार होती थी। यह शिवलिंग आज भी एक कमरे के अंदर पड़ा हुआ है, और उसमें उंगली मारने पर उॅं की टंकार होती है। 

राम मंदिर रास्ते में विष्णु जी की चतुरभुज स्वरूप प्रतिमा है जिसे एक पत्थर के चारों काटकर बनाया गया है। और भगवान को अंकित किया गया है। भगवान शिव के नग्नावस्था में भूतनाथ की विलक्षण प्रतिमा है।

देवबल्ड़ा के शिव मंदिर में दो प्रतिमा ऐसी हैं जो दुनिया में कहीं देखने को नहीं मिलती जिनमें से एक प्रतिमा तपस्विनी पावर्तजी की है जिसमें पार्वतीजी 101 शिवलिंग की माला को ग्रहण किये हुए हैं और प्रतिमा के चारों ओर भगवान विष्णु के दस अवतारों को दर्शाया गया है।

इसके अलावा मस्तिष्क पर शिवलिंग और शिव के वाहन और गण सोमनंदी, ताल-बेताल, श्रृंगी-भृंगी आदि को दर्शाया गया है। तपस्विनी पावर्तजी एक हाथ के ऊपर दूसरा हाथ रखकर खडी हुई है और उनके हाथ के बीच में अग्नि प्रज्जवलित हो रही है, हाथों के नीचे श्रीयंत्र दर्शित हो रहा है। जिससे यह प्रतीत होता है कि शक्ति स्वरूप पार्वतीजी अनेक देवी-देवताओं की अराधना कर शक्ति प्राप्त कर रही है और वही शक्ति बाद में देवासुर संग्राम में भगवान शंकर के परास्त हो जाने के बाद राक्षक का अंत करने काम आई थी और शक्ति ने मूर्छित भगवान शंकर की जान बचाई थी। 

देवबल्ड़ा में दूसरी विलक्षण प्रतिमा भगवान विष्णु की है जिनके एक हाथ में शंख, चक्र, कमल के फूल को एक साथ कलात्मक रूप से अलग से मूर्ति के हिस्से में देकर भुजा पर दर्शाया गया है जो आज तक बाॅये हाथ में किसी भी मूर्ति में देखने को नहीं मिलता है समस्त अस्त्र, शस्त्र, वस्त्रों से सुज्जित भगवान विष्णु इस प्रतिमा में उनको चतुरभुजाधारी भगवान विष्णु को उनके कटी प्रदेश के नीचे चैबीस अवतारों मत्स्य, कूर्म, हयग्रीव, नरसिंह, ब्रम्हा, नारद, कपिल, दत्तात्रेय, नारायण, यज्ञ, नर, वामन, मोहिनी, बुद्ध, ऋषभदेव, परशुराम, राम, वेदव्यास, बलराम, कृष्ण, हंस, धनवंतरि, पृथु एवं कल्कि में कुछ अवतारों को दर्शाया गया है। लीनमुद्रा में भगवान विष्णु की यह एकमात्र प्रतिमा है जो दुनिया में कहीं और देखने को नहीं मिलती। इस प्रकार यह देवबल्ड़ी शिव मंदिर पर्यटन और आस्था के केन्द्र के रूप में पुनः विकसित हुआ है जिन्हें आसपास के लोगों को देखने अवश्य जाना चाहिए।

मालवा में पहाडों पर स्थित देवस्थानों को देवबल्डी कहा जाता है। इन मंदिरों का जीर्णोद्वार राजस्थान से आय कुशल कारीगरों द्वारा किया गया है, जिनमें श्री ओमकांर सिंह भगतजी पुरातत्व विभाग के डाॅ रमेश यादव, श्री जी.पी.एस. चैहान के कुशल मार्गदर्शन में इन मंदिरों का जीर्णोद्वार किया गया है, जो इनकी कुशलता को दर्शाते हैं।

देवबल्डी स्थित विकलेश्वर महादेव एवं अन्य मंदिर प्राकृतिक रूप से नष्ट हुए थे जिनमें लक्ष्मीजी एवं पार्वती जी की छवि की दुर्लभ प्रतिमा जैन देवी अम्बिका, विष्णु, शेषसाही विष्णु, बराह की खड़ी प्रतिमा, तीर्थनकर जैन प्रतिमा आदि प्राप्त हुई है, जो इसके अतीत को दर्शाती है और यह प्रकट करती है कि एक नहीं कई मंदिर थे, जनकी मूर्तियां आज भी सोनकच्छ स्थित गंधर्भपुरी संग्राहालय, और गंदर्भ सेन मेंदिर में स्थित है।


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