शुक्रवार, 6 नवंबर 2020

नरवर किला narvar fort shivpuru mp

नरवर का किला अतिक्रमणकारियों की चपेट में

स्थितिः-

शिवपुरी स्थित ग्वालियर जिले से 70 कि.मी. दूर और शिवपुरी मुख्यालय से 40 कि.मी. दूर मध्यप्रदेश के दूसरे नंबर का ग्वालियर के बाद नरवर किला स्थ्ति है, जिसे पहले आक्रमणकारियों ने नष्ट किया और वर्तमान में अतिक्रमणकारी नष्ट कर रहे हैं। किले के चारों तरफ लोगों ने जगह घेरकर अवैध बस्ती बना ली हैं और किले को नष्ट करने का भरपूर प्रयास कर रहे हैं। किले की बाउंड्री के चारों ओर सुरक्षा के लिए खाई बनाई गई थी उसे पाटकर आसपास के निवासियों ने कब्जें कर निर्माण कर लिये हैं। इसके अलावा नरवर तहसील में जो भी ऐतहासिक इमारते थी उन्हें नष्ट किया जा रहा है, उन्हें तोड़कर अवैध रूप से उनपर कब्जा किया जा रहा है। दिनांक 28.10.2020 को दशहरा अवकाश पर नरवर किले को देखने पर ज्ञात हुआ कि यह बहुत व्यवस्थित, मजबूत और विशाल किला है, जिसने मेरे 30 वर्षो के पर्यटन काल में मैनें भारत के चित्तोड़गढ़, ग्वालियर, भिण्ड, असीरगढ, रायसेन, गोहद आदि विशाल किले फतेह किये गये हैं लेकिन इनमंें नरवर किले की संरचना ने मुझे सर्वाधिक प्रभावित किया है। 

इतिहासः-

 नरवर किला महाभारत कालीन किला है, इसका उल्लेख 12वी शताब्दी तक नलपुरा के रूप में मिलता है। यह राजा नल की राजधानी थी, जो राजा वीरसेन के पुत्र थे, यहां पर नल और दम्यंती की प्रेमकथा उपजी थी इसलिए आज भी यहां पर दम्यंती का महल, राजा की बैठक, राजदरबार आदि देखने को मिलते हैं। श्री हर्ष चरित्र, नौसंधि चरित्रम् में इसका उल्लेख निषध नगर या निषध देश के रूप में किया गया है। राजा नल जब चैपड़ में राजपाठ गवां बैठे थे तब यहाॅ पर राजा नल अपनी पत्नी दम्यन्ती के साथ निवास करते थे और इस दौरान वे रानीघाटी नामक स्थान पर अपनी पत्नी को अभावग्रस्त अवस्था में छोड़कर चले गये थे। इसका उल्लेख नल दम्यन्ती आलेख की कथाओं में है। 

नाग और गुप्तवंशः- 

 नरवर किले पर सर्वप्रथम छटवीं शताब्दी में नाग राजाओं ने राज्य किया था, जिनके नाम भीमनाग, खुर्जरनाग, वत्सनाग, स्कंधनाग, बृहस्पतिनाग, गणपतिनाग, व्याग्रनाग, वसुनाग, देवनाग प्रमुख थे, जिनके सिक्के भी यहाॅ पर प्राप्त होते हैं, जो काकिणी कहे जाते हैं। छटवीं शताब्दी के आसपास समुद्र गुप्त ने नाग राजाओं का विनाश कर यहाॅ पर राज्य किया था दोनों हिन्दू राजाओं ने अनेक हिन्दू मंदिर बनवाये थे। समुद्र गुप्त विजय का उल्लेख म.प्र. के सागर जिले की बीना तहसील के ऐरन नामक स्थान पर प्राप्त शिलालेखों से होता है। इसके अलावा इलाहाबाद स्तम्भ में भी इसका उल्लेख किया गया है। यहाॅ पर अभी भी विष्णु व शिव मंदिर के प्रमाण मिलते हैं, जिसमें किले के गेट पर भगवान शिव व विष्णु की दो प्रतिमायें लगी हैं और शिव बारात, ब्रहमा, विष्णु, महेश के अवशेष देखें जा सकते हैं तथा रानी महल और अन्य इमारतों में मंदिर के खंबों का प्रयोग किया गया था, जिसे देखा जा सकता है, यह एक पूरा नगर था। किले के ऊपर से आज भी सम्पूर्ण नगर की नयनाभिराम छवि दिखाई देती है। 

कछवाह, परिहार, तोमर वंश:-

 12वी शताब्दी से यहाॅ पर कछवाह, परिहार, अलतमस, तोमर, सिकंदर लोधी, अकबर, औरंगजेब, सिंधियावंश के राजाओं ने राज्य किया था। 12वी शताब्दी में कछवाह राजाओं ने किले का निर्माण बडे स्तर पर किया था और उनकी कुलदेवी पसरा माता का मंदिर भी वहाॅ स्थित है। पसरा माता मंदिर की स्थापना सर्वप्रथम मुरैना के पास पाण्डवों द्वारा की गई थी, वह स्थान आज भी जिला मुरैना में स्थित है और पसरादेवी को बकही देवी के रूप में जाना जाता है। नरवर में मुख्य रूप से कछवाह, परिहार, तोमर वंश के राजपूत राजाओं ने राज्य किया और 1508 में सिकंदर लोधी ने इस किले को फतेह किया। इस किले को फतेह कर उसने मंदिर में तोड़फोड़ की थी वह ग्वालियर किले को लूटने की योजना बना रहा था लेकिन 1517 ई. में उसकी मृत्यु नरवर किले में हुई, जिसकी मजार नरवर किले में सबसे ऊपर देखी जा सकती है। 1600 शताब्दी में मुगल शासक अकबर और उसके बाद 19वी शताब्दी तक मुगल राजाओं ने राज्य किया। इस किले का व्यापारिक दृष्टि से महत्व था क्योंकि मालवा जाने का यह मुख्य मार्ग था इसलिए मुगल शासकों ने राजपूत राजाओं को हराकर इस किले पर विजय प्राप्त की थी। 19वी शताब्दी में मराठा राजाओं ने उसको मुगलों से प्राप्त किया था और बाद में मराठा राजाओं को हराकर सिंधिया राजवंश ने इस किले पर राज्य किया था, जिसका उल्लेख एक शिलालेख में किया गया है, जो किले में लगी हुई है। 


 ःःःःः बनावट:ःःःः 

 यह किला लगाग 36 कि.मी.क्षेत्र में फैला हुआ है, जिसके 8 कि.मी.क्षेत्र में निर्माण कार्य दिखाई देता है। इसकी सीमा सिंध नदी के मुहाने पर बने गेट से आरंभ हो जाती है, जो समुद्र तल से 1600 फुट और बस्ती से 500 फुट की ऊॅचाई पर स्थित है। इसके शहर से चार प्रवेश द्वार हैं। इसके आहते हैं जो भजलोक आहाता, मदार आहाता, गूजर आहाता, ढोल आहाता है। यह प्राकतिक रूप से मजबूत किला है जिसके दक्षिण में सिंध एवं पूर्व में अहीर नदी पश्चिम व उत्तर में हजीरा पहाड़ है, जो उसे प्राकृतिक सुरक्षा प्रदान करते हैं। यह भारत का सबसे सुरक्षित अजर-अमर किलों में से एक है, जिसकी बनावट राजपूत और मुगल संरचना का सममिश्रण है। 1580 ई. में जब पुर्तगाल नागरिक जेसुईट अकबर से मिलने जा रहा था तो उसने इसका उल्लेख किया है। इसके अलावा विदेशी यात्री टिफिनथलर ने इसकी सुरक्षा का जिक्र करते हुए लिखा है कि नरवर किले को जीत पाना बेहद मुश्किल है। सुरक्षा की दृष्टि से इसका कोई जवाब नहीं है। नरवर किला न सिर्फ अपनी विशालतम् मजबूती के लिए प्रसिद्व है बल्कि नल दम्यन्ती, आल्हा-ऊदल, मानसिंह, मृगनयनी, ढोलामारू की प्रेम कथाओं के लिए भी प्रसिद्व है। लोडी माता, मंशादेवी, परसादेवी के लिए भी जाना जाता है।

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