शुक्रवार, 19 फ़रवरी 2021

बांछड़ा समाज (जिला रतलाम) m




















 

                                                                बांछड़ा  समाज (जिला रतलाम)

 

                                हमारे भारतीय समाज में महिलाएं अनेक सामाजिक कुरीतियों- देवदासी प्रथा, सती प्रथा, बाल विवाह प्रथा, दहेज प्रथा  से ग्रस्त रही हैं और आजादी के 75 साल बाद भी महिला सशक्तिकरण की पहल के उपरान्त भी उनकी सामाजिक, आर्थिक स्थिति में, विशेषकर ग्रामीण महिलाओं में कोई सुधार नहीं आया है ।

 

                                भारतीय समाज में देवदासी प्रथा से मिलती जुलती महिला शोषण से संबंधित प्रथा मध्यप्रदेश राज्य के रतलाम, मन्दसौर, नीमच जिलों में स्थित बांछड़ा  समाज में व्याप्त है । इनकी आबादी लगभग 23 हजार है । रतलाम, मन्दसौर, नीमच जिलों के लगभग 68 गाँव के 250 स्थानों पर लगभग 2000 लड़कियां जिस्मफरोशी का व्यापार करती हैं ।

                                इन गावों में कचनारा, परवलिया, सेमलिया, हिंगोलिया, मोया, चिकलाना, ढोढर, माननखेड़ा, पिपलिया जोधा, बागाखेड़ा आदि प्रमुख हैं, जो हाईवे पर हैं और इन गाँव में समाज के लोगों द्वारा अपनी बच्चियों से देह व्यापार कराया जाता है ।

 

                                बांछड़ा  समुदाय अपने आप को प्रताप सिसौदिया वीर सैनिक के वंशज बताते हैं। मुगल आक्रमण के बाद सैन्य शक्ति छिन्न भिन्न हो जाने के बाद ये नाच-गा कर तथा नाटक-नौटंकी कर अपना पेट पालने लगे थे, लेकिन धीरे धीरे ये देह व्यापार से जुड़ गये और अब देह व्यापार को इन्होंने कमाई का जरिया बना लिया है तथा वेश्यावृत्ति को परम्परा की तरह निभाते चले आ रहे हैं, उसे सामाजिक मान्यता का रूप दे दिया गया है।

                                यह माना जाता है कि लगभग 150 साल पहले जब अंग्रेज नीमच में तैनात थे तब इन्हें वासना पूर्ति के लिये लाया गया था और तब से यह नीमच, रतलाम, मन्दसौर में  रह कर इसी व्यवसाय में लिप्त हैं ।

                                इस समाज का यह हाल है कि ये खुले आम देह व्यापार करती हैं और व्यवसाय के नाम पर देह व्यापार ही लिखती हैं, इन्हें किसी प्रकार की लाज, शर्म, हया नहीं रहती है, क्योंकि इनके घर वाले ही खुद इनसे यह काम करवाते हैं । इनके समाज में  जिसको ज्यादा ग्राहक मिलते हैं उसकी परिवार में ज्यादा कीमत होती है । इस समाज में पुरूष काम नहीं करते हैं और घर चलाने का जिम्मा महिलाओं पर होता है और वे जिस्मफरोशी में लिप्त होकर अपना घर चलाती हैं ।

                                इस समाज में  व्यवस्था है कि लड़की के जन्म पर जश्न मनाया जाता है और जिस लड़के को विवाह करना है वह लड़की के पिता को 15 लाख रू. देता है तब उसका विवाह होता है । इनके समाज में विवाहित महिलाओं से देह व्यापार नहीं कराया जाता है । परिवार की सबसे बड़ी लड़की से यह कार्य करवाया जाता है । यही कारण है कि लड़कियों का विवाह बड़ी मुश्किल से होता है और वह आजीवन कुंवारी रह कर इस व्यवसाय में लिप्त रहती है ।

 

                                इस समाज की दुर्दशा यह है कि शिक्षा और खेल-कूद की उम्र में अवयस्क लड़कियां देह व्यापार में झोंक दी जाती है, इस कारण इनका शैक्षणिक, मानसिक विकास नहीं हो पाता है और कम उम्र में ही कई प्रकार की शारीरिक, मानसिक बीमारियों से ग्रस्त हो जाती हैं ।       

 

                                बांछड़ा  समाज में परिवार के सदस्य अपनी अवयस्क और अविवाहित लड़कियों से देह व्यापार करवाते हैं और लड़कियों के भाई, मंा-बाप उनकी दलाली करते हैं और हाईवे से ग्राहक ढूंढकर लाते हैं और चलते हुए ट्रक, वाहनों में अपनी लड़कियों को इस कार्य हेतु सुपुर्द कर देते हैं, जो कुछ किलोमीटर के बाद उतर जाती हैं और वहां  से ये इनको वापस ले जाते हैं। इस प्रकार इस समाज में अपनी लड़कियों/बहनों का पालन-पोषण के नाम से शोषण किया जाता है ।

               

                                प्यार, इश्क, मुहब्बत, इज्जत के सपने देखने की इन्हें इजाजत नहीं है और महिला सशक्तिकरण इनसे बहुत दूर है।

इस समाज की 13-14 साल की बालिकाओं को भी होठों पर लिपस्टिक लगाकर, आँखों  में काजल और चेहरे पर पावडर पोते खुले बालों के साथ मटकती, चटकती ड्रेस के साथ इनके परिवार वालों के द्वारा सड़क पर खड़ा कर दिया जाता है और सौदेबाजी की जाती है, 200-300 रू. में इन्हें देहदान के लिये भेज दिया जाता है।

                                मध्यप्रदेश सरकार द्वारा इनको समाज की मुख्य धारा से जोड़ने हेतु बहुत प्रयास किये जा रहे हैं, लेकिन इनकी सामाजिक, आर्थिक, पारिवारिक पृष्ठभूमि के कारण यह मुख्य धारा से नहीं जुड़ पा रही हैं, यही कारण है कि इन्हें समाज में हिकारत की नजर से देखा जाता है । स्कूल कॅालेज में इस समाज की बच्चियों से भेदभाव किया जाता है, इनसे सामान्य वर्ग बात-चीत नहीं करता है, इन्हें नौकरी नहीं मिलती है, यह यदि व्यवसाय करती हैं तो सामाजिक बहिष्कार होने से इनका व्यापार नहीं चलता है ।

                                इस समाज के कुछ नियम हैं, जो कठोर हैं और इन्हीं नियमों का पालन करने के कारण इनके बीच इस बुराई को समाप्त नहीं किया जा रहा है । इनके बीच जो नियम व्याप्त हैं उनमें से कुछ नियम यह हैं -

                                1-            यह कि विवाहित महिलाएं देह व्यापार नहीं करती हैं,

                                2-            यह कि परिवार की सबसे बड़ी लड़की को देह व्यापार करना आवश्यक होता है,

                                3-            यह कि समाज का कोई पुरूष इनसे संबंध नहीं रख सकता है,

                                4-            यह कि समाज का कोई पुरूष इनसे संबंध स्थापित करता है तो उसे समाज से निष्कासित कर दिया जाता है,

                                5-            यह कि समाज के ऐसे पुरूष के पकड़े जाने पर उसका सामूहिक रूप से मुण्डन किया जाता है और उसे दण्डित किया जाता है,

                                 6-            यह कि यदि किसी युवक को किसी युवती से शादी करना है तो उसे 15 लाख रू. युवती के पिता को देना पड़ते हैं।

 

                                समाज की लड़कियां इस दलदल से बाहर जाना चाहती हैं, लेकिन पारिवारिक दबाव के कारण वे ऐसा नहीं कर पाती हैं । एक लम्बे समय से कई समाजसेवी संस्थाएं, प्रशासन, पुलिस सब मिलकर इनके उत्थान के लिये कार्य कर रहे हैं, लेकिन इनकी तरफ से सहयोग प्राप्त न होने के कारण इन्हें इस दलदल से निकालना मुश्किल हो रहा है । इनके सुधार के लिये आवश्यक कार्य निम्नलिखित  हैं -

                                1-            यह कि इन्हें समाज की मुख्य धारा से जोड़ना आवश्यक है,

                                2-            यह कि इनके समाज का माहौल बदलना आवश्यक है,

                                3-            यह कि परिजनों को जागरूक कर इस कुप्रथा के दोषों से अवगत करा कर उससे मुक्ति दिला सकते हैं,

                                4-            यह कि इन्हें किताबें-कापियां तथा शिक्षा के साधन उपलब्ध कराकर शिक्षा की ओर प्रेरित करना आवश्यक है,

                                5-            यह कि इन्हें सरकारी स्कूल में निःशुल्क दाखिला दिया जाना चाहिए,

                                6-            यह कि इन्हें प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कराना आवश्यक है,

                                7-            यह कि इनके बीच घरेलू उद्योग स्थापित करना चाहिए,

                                8-            यह कि प्रशिक्षण शिविर आयोजित करके इन्हें काम-धन्धे से लगाना आवश्यक है,

                                9-            यह कि इन्हें प्रशिक्षित कर इन्हें रोजगार से भी जोड़ा जा सकता है,

                                10-          यह कि इन्हें रोजगार प्राप्त हो जाएगा तो ये इस व्यवसाय से हट सकती हैं,              

                                11-          यह कि इस समाज की महिलाओं को सिलाई, कढ़ाई, बुनाई का प्रशिक्षण देकर इन्हें अपने पैरों पर खड़ा किया जा सकता है,

                                12-          इनके बीच स्वास्थ्य शिविर आयोजित किया जाना भी आवश्यक है, क्यूंकि इन्हें एड्स जैसे गंभीर बीमारियंा जल्दी लगती हैं, इनका निःशुल्क इलाज होना चाहिए,

                                13-          बालिका को देह व्यापार में धकेलने पर उनके परिजनों के खिलाफ दुष्प्रेरण और आपराधिक षडयंत्र का केस दर्ज कर उस युवती को पुलिस गवाह बनाकर उसके परिवार वाले को दण्डित किया जाना चाहिए,

                                14-          यह कि नाबालिग लड़कियों को आरोपी नहीं बनाया जाना चाहिए, उन्हें सहमति की समझ नहीं होती है, इसलिये मंा-बाप को मुख्य आरोपी मानना चाहिए।

 

                                इनके उत्थान लिये 11-अगस्त-1998 को निर्मल अभियान पहली बार प्रारम्भ किया गया था, लेकिन इसका कोई फायदा इनको प्राप्त नहीं हुआ है ।

                                जाबाली योजना के अंतर्गत इनको चिन्हित कर रोजगार का प्रशिक्षण देने, बैंक लोन दिलाने आदि के प्रावधान थे, लेकिन इस योजना का कोई लाभ इन्हें प्राप्त नहीं हुआ है। वर्तमान में कुन्दन कुटीर बालिका गृह योजना चल रही है, जिसमें 40 बालिकाओं को संरक्षण देकर उसमें रखा जा रहा है और पढ़ाई कराई जा रही है । इसके साथ ही साथ वर्तमान में सशक्त वाहिनी योजना के अंतर्गत इस समाज की महिलाओं को पुलिस जैसे सशक्त बलों से जोड़ा जा रहा है, लेकिन इन योजनाओं का लाभ इस समाज को प्राप्त नहीं हो रहा है, इसके बाद भी नीमच निवासी टीना मालवीय ने नायब तहसीलदार बन कर बांछड़ा  समाज में एक नया कीर्तिमान स्थापित किया है, अतः शिक्षा के प्रचार-प्रसार से इस समाज का फायदा हो सकता है ।

 

                                                                                     (उमेश कुमार गुप्ता),

                                                                                                अध्यक्ष,

                                                                                                जिला विधिक सेवा प्राधिकरण/

                                                                                                जिला एवं सत्र न्यायाधीश,

                                                                                                रतलाम म.प्र.

 

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