शुक्रवार, 19 फ़रवरी 2021

बांछड़ा समाज (जिला रतलाम) m




















 

                                                                बांछड़ा  समाज (जिला रतलाम)

 

                                हमारे भारतीय समाज में महिलाएं अनेक सामाजिक कुरीतियों- देवदासी प्रथा, सती प्रथा, बाल विवाह प्रथा, दहेज प्रथा  से ग्रस्त रही हैं और आजादी के 75 साल बाद भी महिला सशक्तिकरण की पहल के उपरान्त भी उनकी सामाजिक, आर्थिक स्थिति में, विशेषकर ग्रामीण महिलाओं में कोई सुधार नहीं आया है ।

 

                                भारतीय समाज में देवदासी प्रथा से मिलती जुलती महिला शोषण से संबंधित प्रथा मध्यप्रदेश राज्य के रतलाम, मन्दसौर, नीमच जिलों में स्थित बांछड़ा  समाज में व्याप्त है । इनकी आबादी लगभग 23 हजार है । रतलाम, मन्दसौर, नीमच जिलों के लगभग 68 गाँव के 250 स्थानों पर लगभग 2000 लड़कियां जिस्मफरोशी का व्यापार करती हैं ।

                                इन गावों में कचनारा, परवलिया, सेमलिया, हिंगोलिया, मोया, चिकलाना, ढोढर, माननखेड़ा, पिपलिया जोधा, बागाखेड़ा आदि प्रमुख हैं, जो हाईवे पर हैं और इन गाँव में समाज के लोगों द्वारा अपनी बच्चियों से देह व्यापार कराया जाता है ।

 

                                बांछड़ा  समुदाय अपने आप को प्रताप सिसौदिया वीर सैनिक के वंशज बताते हैं। मुगल आक्रमण के बाद सैन्य शक्ति छिन्न भिन्न हो जाने के बाद ये नाच-गा कर तथा नाटक-नौटंकी कर अपना पेट पालने लगे थे, लेकिन धीरे धीरे ये देह व्यापार से जुड़ गये और अब देह व्यापार को इन्होंने कमाई का जरिया बना लिया है तथा वेश्यावृत्ति को परम्परा की तरह निभाते चले आ रहे हैं, उसे सामाजिक मान्यता का रूप दे दिया गया है।

                                यह माना जाता है कि लगभग 150 साल पहले जब अंग्रेज नीमच में तैनात थे तब इन्हें वासना पूर्ति के लिये लाया गया था और तब से यह नीमच, रतलाम, मन्दसौर में  रह कर इसी व्यवसाय में लिप्त हैं ।

                                इस समाज का यह हाल है कि ये खुले आम देह व्यापार करती हैं और व्यवसाय के नाम पर देह व्यापार ही लिखती हैं, इन्हें किसी प्रकार की लाज, शर्म, हया नहीं रहती है, क्योंकि इनके घर वाले ही खुद इनसे यह काम करवाते हैं । इनके समाज में  जिसको ज्यादा ग्राहक मिलते हैं उसकी परिवार में ज्यादा कीमत होती है । इस समाज में पुरूष काम नहीं करते हैं और घर चलाने का जिम्मा महिलाओं पर होता है और वे जिस्मफरोशी में लिप्त होकर अपना घर चलाती हैं ।

                                इस समाज में  व्यवस्था है कि लड़की के जन्म पर जश्न मनाया जाता है और जिस लड़के को विवाह करना है वह लड़की के पिता को 15 लाख रू. देता है तब उसका विवाह होता है । इनके समाज में विवाहित महिलाओं से देह व्यापार नहीं कराया जाता है । परिवार की सबसे बड़ी लड़की से यह कार्य करवाया जाता है । यही कारण है कि लड़कियों का विवाह बड़ी मुश्किल से होता है और वह आजीवन कुंवारी रह कर इस व्यवसाय में लिप्त रहती है ।

 

                                इस समाज की दुर्दशा यह है कि शिक्षा और खेल-कूद की उम्र में अवयस्क लड़कियां देह व्यापार में झोंक दी जाती है, इस कारण इनका शैक्षणिक, मानसिक विकास नहीं हो पाता है और कम उम्र में ही कई प्रकार की शारीरिक, मानसिक बीमारियों से ग्रस्त हो जाती हैं ।       

 

                                बांछड़ा  समाज में परिवार के सदस्य अपनी अवयस्क और अविवाहित लड़कियों से देह व्यापार करवाते हैं और लड़कियों के भाई, मंा-बाप उनकी दलाली करते हैं और हाईवे से ग्राहक ढूंढकर लाते हैं और चलते हुए ट्रक, वाहनों में अपनी लड़कियों को इस कार्य हेतु सुपुर्द कर देते हैं, जो कुछ किलोमीटर के बाद उतर जाती हैं और वहां  से ये इनको वापस ले जाते हैं। इस प्रकार इस समाज में अपनी लड़कियों/बहनों का पालन-पोषण के नाम से शोषण किया जाता है ।

               

                                प्यार, इश्क, मुहब्बत, इज्जत के सपने देखने की इन्हें इजाजत नहीं है और महिला सशक्तिकरण इनसे बहुत दूर है।

इस समाज की 13-14 साल की बालिकाओं को भी होठों पर लिपस्टिक लगाकर, आँखों  में काजल और चेहरे पर पावडर पोते खुले बालों के साथ मटकती, चटकती ड्रेस के साथ इनके परिवार वालों के द्वारा सड़क पर खड़ा कर दिया जाता है और सौदेबाजी की जाती है, 200-300 रू. में इन्हें देहदान के लिये भेज दिया जाता है।

                                मध्यप्रदेश सरकार द्वारा इनको समाज की मुख्य धारा से जोड़ने हेतु बहुत प्रयास किये जा रहे हैं, लेकिन इनकी सामाजिक, आर्थिक, पारिवारिक पृष्ठभूमि के कारण यह मुख्य धारा से नहीं जुड़ पा रही हैं, यही कारण है कि इन्हें समाज में हिकारत की नजर से देखा जाता है । स्कूल कॅालेज में इस समाज की बच्चियों से भेदभाव किया जाता है, इनसे सामान्य वर्ग बात-चीत नहीं करता है, इन्हें नौकरी नहीं मिलती है, यह यदि व्यवसाय करती हैं तो सामाजिक बहिष्कार होने से इनका व्यापार नहीं चलता है ।

                                इस समाज के कुछ नियम हैं, जो कठोर हैं और इन्हीं नियमों का पालन करने के कारण इनके बीच इस बुराई को समाप्त नहीं किया जा रहा है । इनके बीच जो नियम व्याप्त हैं उनमें से कुछ नियम यह हैं -

                                1-            यह कि विवाहित महिलाएं देह व्यापार नहीं करती हैं,

                                2-            यह कि परिवार की सबसे बड़ी लड़की को देह व्यापार करना आवश्यक होता है,

                                3-            यह कि समाज का कोई पुरूष इनसे संबंध नहीं रख सकता है,

                                4-            यह कि समाज का कोई पुरूष इनसे संबंध स्थापित करता है तो उसे समाज से निष्कासित कर दिया जाता है,

                                5-            यह कि समाज के ऐसे पुरूष के पकड़े जाने पर उसका सामूहिक रूप से मुण्डन किया जाता है और उसे दण्डित किया जाता है,

                                 6-            यह कि यदि किसी युवक को किसी युवती से शादी करना है तो उसे 15 लाख रू. युवती के पिता को देना पड़ते हैं।

 

                                समाज की लड़कियां इस दलदल से बाहर जाना चाहती हैं, लेकिन पारिवारिक दबाव के कारण वे ऐसा नहीं कर पाती हैं । एक लम्बे समय से कई समाजसेवी संस्थाएं, प्रशासन, पुलिस सब मिलकर इनके उत्थान के लिये कार्य कर रहे हैं, लेकिन इनकी तरफ से सहयोग प्राप्त न होने के कारण इन्हें इस दलदल से निकालना मुश्किल हो रहा है । इनके सुधार के लिये आवश्यक कार्य निम्नलिखित  हैं -

                                1-            यह कि इन्हें समाज की मुख्य धारा से जोड़ना आवश्यक है,

                                2-            यह कि इनके समाज का माहौल बदलना आवश्यक है,

                                3-            यह कि परिजनों को जागरूक कर इस कुप्रथा के दोषों से अवगत करा कर उससे मुक्ति दिला सकते हैं,

                                4-            यह कि इन्हें किताबें-कापियां तथा शिक्षा के साधन उपलब्ध कराकर शिक्षा की ओर प्रेरित करना आवश्यक है,

                                5-            यह कि इन्हें सरकारी स्कूल में निःशुल्क दाखिला दिया जाना चाहिए,

                                6-            यह कि इन्हें प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कराना आवश्यक है,

                                7-            यह कि इनके बीच घरेलू उद्योग स्थापित करना चाहिए,

                                8-            यह कि प्रशिक्षण शिविर आयोजित करके इन्हें काम-धन्धे से लगाना आवश्यक है,

                                9-            यह कि इन्हें प्रशिक्षित कर इन्हें रोजगार से भी जोड़ा जा सकता है,

                                10-          यह कि इन्हें रोजगार प्राप्त हो जाएगा तो ये इस व्यवसाय से हट सकती हैं,              

                                11-          यह कि इस समाज की महिलाओं को सिलाई, कढ़ाई, बुनाई का प्रशिक्षण देकर इन्हें अपने पैरों पर खड़ा किया जा सकता है,

                                12-          इनके बीच स्वास्थ्य शिविर आयोजित किया जाना भी आवश्यक है, क्यूंकि इन्हें एड्स जैसे गंभीर बीमारियंा जल्दी लगती हैं, इनका निःशुल्क इलाज होना चाहिए,

                                13-          बालिका को देह व्यापार में धकेलने पर उनके परिजनों के खिलाफ दुष्प्रेरण और आपराधिक षडयंत्र का केस दर्ज कर उस युवती को पुलिस गवाह बनाकर उसके परिवार वाले को दण्डित किया जाना चाहिए,

                                14-          यह कि नाबालिग लड़कियों को आरोपी नहीं बनाया जाना चाहिए, उन्हें सहमति की समझ नहीं होती है, इसलिये मंा-बाप को मुख्य आरोपी मानना चाहिए।

 

                                इनके उत्थान लिये 11-अगस्त-1998 को निर्मल अभियान पहली बार प्रारम्भ किया गया था, लेकिन इसका कोई फायदा इनको प्राप्त नहीं हुआ है ।

                                जाबाली योजना के अंतर्गत इनको चिन्हित कर रोजगार का प्रशिक्षण देने, बैंक लोन दिलाने आदि के प्रावधान थे, लेकिन इस योजना का कोई लाभ इन्हें प्राप्त नहीं हुआ है। वर्तमान में कुन्दन कुटीर बालिका गृह योजना चल रही है, जिसमें 40 बालिकाओं को संरक्षण देकर उसमें रखा जा रहा है और पढ़ाई कराई जा रही है । इसके साथ ही साथ वर्तमान में सशक्त वाहिनी योजना के अंतर्गत इस समाज की महिलाओं को पुलिस जैसे सशक्त बलों से जोड़ा जा रहा है, लेकिन इन योजनाओं का लाभ इस समाज को प्राप्त नहीं हो रहा है, इसके बाद भी नीमच निवासी टीना मालवीय ने नायब तहसीलदार बन कर बांछड़ा  समाज में एक नया कीर्तिमान स्थापित किया है, अतः शिक्षा के प्रचार-प्रसार से इस समाज का फायदा हो सकता है ।

 

                                                                                     (उमेश कुमार गुप्ता),

                                                                                                अध्यक्ष,

                                                                                                जिला विधिक सेवा प्राधिकरण/

                                                                                                जिला एवं सत्र न्यायाधीश,

                                                                                                रतलाम म.प्र.

 

लेबल:

बांछडा समाज से संबंधित विधिक साक्षरता एवं जागरूकता शिविर ग्राम परवलिया, तहसील जावरा जिला रतलाम

बांछड़ा  समाज से संबंधित

विधिक साक्षरता एवं जागरूकता शिविर

ग्राम परवलिया,

तहसील जावरा जिला रतलाम

 

 

 

                                दिनांक 17.02.2021 को रतलाम जिले की जावरा तहसील से लगभग 15 कि.मी. दूर स्थित ग्राम परवलिया में (जहाँ  के अधिकांश रहवासी बांछडा  समुदाय से हैं तथा इस समुदाय एवं गाँव के बारे में यह जानकारी दी गई है कि कुछ महिलाएं देह व्यापार में लिप्त हैं) जिला विधिक सेवा प्राधिकरण रतलाम के अध्यक्ष तथा जिला एवं सत्र न्यायाधीश श्री उमेश कुमार गुप्ता के मार्गदर्शन एवं उपस्थिति में विधिक साक्षरता एवं जागरूकता शिविर का आयोजन किया गया। शिविर का उद्देश्य बांछडा  समुदाय के बच्चों और खास तौर पर बालिका शिक्षा के महत्व एवं उन्हें शिक्षा से जोड़ने के लिये प्रेरित किया जाना था ।  

 

                                शिविर में तहसील विधिक सेवा प्राधिकरण जावरा के अध्यक्ष अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश श्री राजीव के. पाल तथा व्यवहार न्यायाधीश वर्ग-1 श्रीमती नमिता बोरासी एवं श्री सूर्यपाल सिंह राठौर के अतिरिक्त पुलिस विभाग से एडीशनल एस.पी. श्री सुनील पाटीदार, एस.डी.ओ.पी. श्री रविन्द्र बिनवाल, रिंगनोद की थाना निरीक्षक सुश्री दर्शना मुजाल्दा, जिला महिला एवं बाल विकास विभाग की परियोजना अधिकारी, प्रशासनिक अधिकारी, तहसीलदार, जनपद पंचायत, शिक्षा विभाग, स्वास्थ्य विभाग के विभिन्न अधिकारी कर्मचारी एवं बड़ी संख्या में ग्रामवासी उपस्थित रहे । जिले में पहली बार पूरे प्रशासन ने एकजुट होकर समाज की समस्याएं सुनी और मौके पर समाधान ढूंढे गये ।

 

                                शिविर में परियोजना अधिकारी, जिला महिला एवं बाल विकास विभाग के द्वारा बताया गया कि विभाग की ओर से ग्राम की इच्छुक महिलाओं एवं बालिकाओं के लिये सिलाई-कढ़ाई, मेंहदी, ब्यूटी पार्लर, फिजियोथेरेपी, कुकिंग आदि का प्रशिक्षण करवाया जा सकता है। परियोजना अधिकारी को निर्देशित किया गया कि ग्राम में शिविर आयोजित कर सर्वे करवाएं तथा जो महिलाएं या बालिकाएं इच्छुक हैं उनकी सूची तैयार करें तथा जो इच्छुक नहीं हैं उन्हें उक्त प्रशिक्षण हेतु प्रेरित करें  और गाँव में ही यह व्यवस्था उपलब्ध कराई जावे और फार्म भरवाये जावें । उनके द्वारा आश्वासन दिया गया कि शीघ्र शिविर आयोजित किया जावेगा । 

 

                                शिविर में एन.जी.ओ. यशदीप शैक्षणिक जनहितार्थ समिति के पदाधिकारी ने बताया कि यदि  उन्हें उचित स्थान उपलब्ध कराया जाता है तो वे ग्राम में कम्प्यूटर के बेसिक कोर्स का एक माह का निःशुल्क प्रशिक्षण देने के लिये तैयार हैं । इस हेतु शिविर में उपस्थित ग्राम सरपंच से सामुदायिक भवन उपलब्ध कराये जाने अथवा अन्य उपयुक्त स्थान चिन्हित कर उपलब्ध कराये जाने का अनुरोध किया गया, उनके द्वारा शीघ्र व्यवस्था की जावेगी । 

 

                                शिविर में उपस्थित स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी द्वारा बताया गया कि नजदीकी ग्राम ढोढर में कैम्प लगाकर लोगों को परिवार नियोजन के साधन उपलब्ध कराये जाते हैं तथा एच.आई.वी. एड्स की जाँच  की सुविधा उपलब्ध कराई जाती है। उनके द्वारा नियमित रूप से स्वास्थ्य परीक्षण शिविर लगाये जाने की जानकारी दी   गई। उनके द्वारा सामाजिक संस्थाओं से सहयोग लेकर ग्राम में स्वास्थ्य शिविर आयोजित करने, स्वास्थ्य परीक्षण करने, महिलाओं को निःशुल्क सेनेटरी पेड्स एवं आवश्यकता अनुरूप गोली, दवाईयां  वितरित किये जाने का आश्वासन दिया गया ।

 

                                शिविर में उपस्थित ग्रामवासियों के द्वारा बताया गया कि गाँव में पाँचवी कक्षा तक सरकारी स्कूल है, इसके आगे पढ़ाई के लिये पास के अन्य गांवो कलालिया, ढोढर जाना पड़ता है । पाँचवी कक्षा से आगे तक स्कूल प्रारम्भ किये जाने की मांग  की गई। इस संबंध में शिक्षा विभाग से उपस्थित अधिकारीगण के द्वारा बताया गया इस मांग के संबंध में सर्व शिक्षा अभियान योजना के अंतर्गत कार्यवाही करते हुए पाँचवी कक्षा से आगे की शिक्षा के लिये स्कूल खोले जाने हेतु प्रयास किये जावेंगे । इस संबंध में म.प्र. राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण, जबलपुर के द्वारा भी पहल किये जाने का अनुरोध किया जाता है ।

 

                                प्रौढ़ शिक्षा योजना के अंतर्गत अधिक उम्र के अनपढ़ पुरूष-महिलाओं को भी शिक्षा के प्रति रूचि जागृत किये जाने, शिक्षा गृहण करने  के लिये प्रोत्साहित किये जाने, कुरीतियों से दूर रहने के लिये प्रेरित किये जाने हेतु गाँव में शिविर लगाये जाने तथा अधिक उम्र के महिला पुरूषों को शिक्षा प्रदान किये जाने हेतु कार्य योजना बनाये जाने का आश्वासन दिया गया ।

                                ग्रामवासी एवं बांछड़ा  समुदाय समाज में व्याप्त कुरीतियों को दूर कर समाज की मुख्य धारा से जुड़कर सम्मानपूर्वक जीवन यापन कर सकें इस उद्देश्य की प्राप्ति हेतु तथा ग्राम में शिक्षा के प्रचार-प्रसार हेतु शिविर लगाकर शिक्षाप्रद एवं रोचक पुस्तकें निःशुल्क वितरित किये जाने का आश्वासन दिया गया ।

 

                                शिविर में उपस्थित जनसमुदाय से सार्वजनिक रूप से संवाद स्थापित किया गया । शिविर में बांछडा  समुदाय की 21 बालिकाएं तथा 27 बालक उपस्थित थे, जो विभिन्न स्कूल, कॅालेजों में  शिक्षा गृहण कर रहे हैं । ग्राम की  बालिकाओं-  सोनाली चैहान, अंकिता चैहान, राज नन्दनी चैहान, संजना चैहान, निकिता चैहान, चंचल चैहान, सलोनी चैहान से किसी प्रकार की समस्या आदि के बारे में  पूछा गया । उक्त उपस्थित बालिकाएं पास के ग्राम कलालिया के एस.एस.एम. स्कूल में कक्षा 9,10,11 में अध्ययन कर रही हैं। उनके द्वारा बताया गया कि कई बार स्कूल में ऐसी स्थिति निर्मित हो जाती है कि उन्हें गलत नजर से देखा जाता है तथा उन्हें वह सम्मान और इज्जत नहीं मिलती है जो अन्य को मिलती है। उन्हें यह समझाईश दी गई कि यदि उनका आचरण अच्छा रहेगा तो उन्हंे किसी प्रकार से डरने, सहमने की आवश्यकता नहीं है, वे निडरता के साथ रहें । इस समुदाय की महिलाओं के शिक्षा के क्षेत्र में अथवा अन्य प्रोफेशन या सेवा में आगे आने पर उनकी पहचान को छुपाया जा सके/सार्वजनिक न किया जावे इस संबंध में शासन स्तर पर कार्यवाही की जाने हेतु तथा इस समाज की महिलाओं को मुख्य धारा से जोड़ने एवं सम्मान पूर्वक जीवन जीने का अवसर प्रदान किये जाने के संबंध में प्रशासनिक अधिकारियों को कार्य योजना बनाने एवं उचित प्रस्ताव शासन स्तर पर रखे जाने की सलाह दी गई।

                               

                                शिविर में उपस्थित उक्त बालिकाओं के द्वारा यह बताया गया कि जब गाँव में पुलिस की दबिश होती है तब कई बार ऐसा भी होता है कि निरपराध को पकड़ लिया जाता है और उनके खिलाफ केस बना दिया जाता है । ऐसे केस वापस लिये जाने तथा निरपराध को परेशान न करने का निवेदन किया गया । इस बाबत शिविर में उपस्थित एडीशनल एस.पी. एवं अन्य प्रशासनिक अधिकारियों के द्वारा बताया गया कि गाँव में सर्वे करवा कर ऐसी बालिकाओं एवं महिलाओं की सूची तैयार की जावेगी जो पढ़ रही हैं या पढ़ना चाहती हैं, उनके पहचान पत्र बनवाये जावेंगे तथा निरपराध बालिकाओं को परेशान नहीं किया जावेगा, उनका सहयोग किया जावेगा।

 

                                गाँव के बड़े बुजुर्गो और शिक्षितों से यह अपेक्षा की गई कि वे ऐसा कोई कार्य ग्राम में  न होने दें जिसकी वजह से पुलिस दबिश जैसी स्थिति निर्मित हो और सामाजिक मान्यता के नाम पर कुरीतियों को बढ़ावा न दें ।

 

                                शिविर में विभिन्न विभागों से उपस्थित अधिकारीगण के द्वारा उपस्थित जनसमुदाय एवं विशेषकर पढ़ने वाले बालक बालिकाओं तथा उपस्थित महिलाओं की समस्याओं को सुना तथा शासन स्तर पर चलाई जा रही विभिन्न कल्याणकारी योजनाओं, छात्रवृत्ति, उपलब्ध होने वाली विभिन्न सरकारी सहायताओं की विस्तार से जानकारी दी। उपस्थित अधिकारीगण के द्वारा जनजागृति एवं समाजोत्थान के लिये कार्य किये जाने हेतु प्रेरक उद्बोधन दिये एवं शोषण के विरूद्ध आवाज उठाने तथा समाज की मुख्यधारा में सम्मान पूर्वक जीवन व्यतीत किये जाने का आह्वान किया । शिविर में उपस्थित इस समुदाय के लोगों को प्रेरित किया गया कि वे शिक्षा प्राप्त करें, अच्छे कार्य करते हुए समाज की मुख्य धारा से जुड़ कर उपेक्षित एवं शोषित जीवन से बाहर निकलकर समाजोत्थान का कार्य करते हुए सम्मानपूर्वक जीवन व्यतीत करें ।

 

                                शिविर में बड़ी संख्या में ग्राम के शिक्षित युवा भी उपस्थित रहे जिनसे संवाद किये जाने पर ज्ञात हुआ कि इस ग्राम के निवासी छात्र आकाश चैहान खण्डवा में  एग्रीकल्चर कॅालेज में अध्ययनरत है तथा पीएससी की तैयार कर रहे हैं, छात्र सोनू चैहान के द्वारा बताया गया कि उसने हाईस्कूल तथा हायर सेकेण्डरी की परीक्षाएं 92 और 94 प्रतिशत अंकों के साथ उत्तीर्ण की है तथा वह जावरा के शासकीय महाविद्यालय में उच्च शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं। इस समुदाय के शिक्षित युवाओं को नौकरी में  अलग से पैकेज मिले इस हेतु पुलिस और प्रशासन के द्वारा कार्ययोजना बनाकर शासन स्तर पर प्रस्तुत किये जाने का आश्वासन दिया गया ।   

 

                                शिविर में उपस्थित पुलिस एवं प्रशासनिक अमले के द्वारा यह भी बताया गया  कि वे सर्वे कर ऐसे शिक्षित बालक बालिकाओं की सूची तैयार करेंगे जो हाई स्कूल हायर सेकेण्डरी उत्तीर्ण हों/कोई अन्य योग्यता रखते हों/ड्रायविंग जानते हों, उन्हें  पुलिस में भर्ती हेतु प्रोत्साहित करेंगे तथा पेरालीगल वॅालिन्टियर्स बनने हेतु भी प्रोत्साहित किया जावगा ।

 

                                शिविर में उपस्थित मीडिया एवं पत्रकार बन्धुओं से यह अपेक्षा की गई कि वे इस समुदाय के संबंध में सकारात्मक आलेख एवं समाचारों को ही प्राथमिकता दें तथा नकारात्मक समाचारों को छापने दिखाने से बचें । 

 

                                शिविर में उपस्थित तहसील विधिक सेवा प्राधिकरण जावरा के अध्यक्ष अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश श्री राजीव के. पाल के द्वारा बताया  गया कि वे विभिन्न कार्य योजनाओं की पूर्ति के संबंध में समस्त विभागों से समन्वय स्थापित कर समय सीमा निर्धारित कर यथोचित कार्यवाही सम्पादित करेंगे, विभिन्न विभागों से संबंधित कार्य को पूर्ण करावेंगे तथा की गई कार्यवाही से अवगत करावेंगे । साथ ही सचिव जिला विधिक सेवा प्राधिकरण, रतलाम को भी आवश्यक कार्यवाही किये जाने हेतु निर्देशित किया गया तथा समय समय पर इसी प्रकार के और शिविर लगाने हेतु प्रोत्साहित किया   गया ।

 

                                                                                (उमेश कुमार गुप्ता),

                                                                                अध्यक्ष,

                                                                                जिला विधिक सेवा प्राधिकरण,

                                                                                रतलाम म.प्र.