सोमवार, 1 सितंबर 2014

                              :ः मालादेवी मंदिर:ः डंसं कमअप ज्मउचसम
                       ळलंतंेचनत


        9 वीं शताब्दी का यह हिन्दू मंदिर जो पहाड़ पर चट्टानों को काटकर बनाया गया है। जिसमें द्वार पर गंगा, यमुना एवं अन्य देवी देवताओं की मूर्तियाॅ हैं। यह एक वैष्णव मंदिर है। जिसके ऊपर एक शिकारा है, तथा द्वार पर गरूड़ बने हुये हैंे। इसके चारों तरफ कुबेर, इन्द्र, इन्द्राणि एवं अन्य देवी देवताओं की मूर्तियाॅ हैं। कालान्तर में इस क्षेत्र में जैन धर्म का अत्याधिक प्रभाव होने के कारण इसमें जैन तीर्थंकर की मूर्तियाॅ स्थापित की गई हैं । जिसमें महावीर स्वामी की 06 फुट की एक प्रतिमा देखने लायक है। इस मंदिर के अन्दर की दीवालों पर 24 जैन तीर्थंकर की मूर्तियां अंकित हैं।
        इसके अलावा यक्ष, यक्षणी तथा अन्य जैन समुदाय के देवी-देवताओं की मूर्तियां हैं। वर्तमान में यह मंदिर जीर्ण-शीर्ण अवस्था में है । लेकिन इसके जाने का रास्ता बस स्टेण्ड से है।

         :ः हिण्डोला तोरण द्वार:ः  भ्पदकवसं ज्वतदं
                     ळलंतंेचनत

        माला देवी  मंदिर के रास्ते में जाते हुये हिण्डोला तोरण द्वार पड़ता है। जो दसवीं सदी का बना हुआ है । जिसके गेट पर भगवान विष्णु के 10 अवतार दोनों खम्ब पर उत्कीर्ण हैं। जो कला का अनुपम नमूना है।
         इसी तोरड़ द्वार के पास चार खम्बा है। जो दसवीं सदी का बना हुआ है। इसमें चार स्तम्भ हैं । चारों स्तम्भ ऊपर से खम्बों से जुड़े हुये हैं जिसमें चारों तरफ खम्बों के ऊपर शेर, कुबेर आदि आधार स्तम्भ के रूप में दर्शित हैं तथा खम्बों पर सुन्दर स्त्रियों की मूर्तियाॅ विभिन्न भाव-भंगिमा में अंकित हैं ।
            :ः अष्ट खम्बा:ः ।ेजीं ज्ञींउइीं
                     ळलंतंेचनत
        ग्यारसपुर बस स्टेण्ड के पास और सागर रोड पर रेस्ट हाउस के सामने  9 वीं शताब्दी के एक पुराने मंदिर के अवशेष हैं। जिसमें 8 खम्भ हैं  उसमें उत्कीर्ण ब्राम्ही लिपि  के शिलालेख के अनुसार वह 982 ईश्वी में बना था। जिसमें ब्रम्हा, विष्णु, शंकर त्रिदेव की मूर्तियाॅ स्तम्भ के ऊपर अंकित हैं। नीचे का मुख्य भाग गायब है जो एक  शिव मंदिर था। इसके स्तम्भ पर विभिन्न मुद्राओं में स्त्री-पुरूष की मैथुनरत आकृतियाॅ अंकित हैं, तथा गर्भकाल के 09 माह को भी स्तम्भ पर कलात्मक रूप से दर्शाया गया है।  एक खम्बें में कई स्त्री पुरूष को लंबाई में एक साथ विभिन्न मुद्राओं में आलिंगनरत दर्शाया गया है। इसके अलावा विभिन्न देवी देवताओं की टूटी फूटी मूर्तियाॅ का ढेर आसपास पड़ा हुआ है जो उसके वैभव को दर्शाता है।  

            ःः वाजरे मठ:ः ठंहतं डंजी
                 ळलंतंेचनत

     दसवीं शताब्दी का यह एक विशाल हिन्दू मंदिर है। जिसके तीन दरवाजे पर ब्रम्हा, विष्णु, और शंकर की मूर्तियाॅ अंकित हैं और तीनों गेट कलात्मक रूप से बने हुये हैं । जिन पर विभिन्न यक्ष-यक्षणी की मूर्तियाॅं अंकित हैं। मंदिर के चारों ओर नरसिंहवतार, अर्द्धनारीश्वर, शिव, विष्णु के विभिन्न अवतार, भगवान गणेश, रिद्धि-सिद्धि सहित तथा अर्जुन द्वारा मछली को तीर मारते हुये भी दर्शाया गया है।
        इस मंदिर के अन्दर कालान्तर में  जैन धर्म का प्रभाव बढ़ने के बाद जैन तीर्थंकर की प्रतिमायें स्थापित की गई।

                  :ः ग्यारसपुर:ः  ळलंतंेचनत
                   
         यह एक ऐतिहासिक महत्व का मध्य काल का छोटा सा  वैभवशाली शहर है । जो अब मध्यप्रदेश के विदिशा जिले से 35 किमी0 दूर की एक तहसील है । जो अपनी विश्वसुन्दरी शलभन्जिका के लिये विश्व प्रसिद्ध है। कई करोड़ कीमत की भारत सुन्दरी की यह मूर्ति अब गुजरी महल, ग्वालियर में सुरक्षित रखी हुई हैं । इसे भारतीय वीनस, ग्यारसपुर लेडी, विश्वसुन्दरी के रूप में जाना जाता है। पैराणिक कथाओं के अनुसार ग्यारस पर यहाॅ पर एक  त्यौहार ‘‘जीवन के उल्लास‘‘ का मनाया जाता था। इसलिये इसका नाम ग्यारसपुर पड़ा।
              ग्यारसपुर के दर्शनीय स्थल
        :ः बौद्ध स्तूप:ः ठनकीं ैजनचं
             ळलंतंेचनत   

         यहाॅ पर एक बौद्ध स्तूप भी है जो अर्द्धगोलाकार है । जिसकी ऊंचाई 2.4 मीटर व व्यास 2.5 मीटर है जिसमें बुद्ध की मुद्रा खुदी हुई है यह सांची के स्तूप से लगभग 45 किमी0 दूर एक पहाड़ी पर स्थित है।

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