सोमवार, 9 नवंबर 2020

नरवर का किला अतिक्रमणकारियों की चपेट में

स्थितिः-

शिवपुरी स्थित ग्वालियर जिले से 70 कि.मी. दूर और शिवपुरी मुख्यालय से 40 कि.मी. दूर मध्यप्रदेश के दूसरे नंबर का ग्वालियर के बाद नरवर किला स्थ्ति है, जिसे पहले आक्रमणकारियों ने नष्ट किया और वर्तमान में अतिक्रमणकारी नष्ट कर रहे हैं। किले के चारों तरफ लोगों ने जगह घेरकर अवैध बस्ती बना ली हैं और किले को नष्ट करने का भरपूर प्रयास कर रहे हैं। किले की बाउंड्री के चारों ओर सुरक्षा के लिए खाई बनाई गई थी उसे पाटकर आसपास के निवासियों ने कब्जें कर निर्माण कर लिये हैं। इसके अलावा नरवर तहसील में जो भी ऐतहासिक इमारते थी उन्हें नष्ट किया जा रहा है, उन्हें तोड़कर अवैध रूप से उनपर कब्जा किया जा रहा है।

दिनांक 28.10.2020 को दशहरा अवकाश पर नरवर किले को देखने पर ज्ञात हुआ कि यह बहुत व्यवस्थित, मजबूत और विशाल किला है, जिसने मेरे 30 वर्षो के पर्यटन काल में मैनें भारत के चित्तोड़गढ़, ग्वालियर, भिण्ड, असीरगढ, रायसेन, गोहद आदि विशाल किले फतेह किये गये हैं लेकिन इनमंें नरवर किले की संरचना ने मुझे सर्वाधिक प्रभावित किया है।

इतिहासः-

नरवर किला महाभारत कालीन किला है, इसका उल्लेख 12वी शताब्दी तक नलपुरा के रूप में मिलता है। यह राजा नल की राजधानी थी, जो राजा वीरसेन के पुत्र थे। यहां पर नल और दम्यंती की प्रेमकथा उपजी थी इसलिए आज भी यहां पर दम्यंती का महल, राजा की बैठक, राजदरबार आदि देखने को मिलते हैं। श्री हर्ष चरित्र, नौसंधि चरित्रम् में इसका उल्लेख निषध नगर या निषध देश के रूप में किया गया है। राजा नल जब चैपड़ में राजपाठ गवां बैठे थे तब यहाॅ पर राजा नल अपनी पत्नी दम्यन्ती के साथ निवास करते थे और इस दौरान वे रानीघाटी नामक स्थान पर अपनी पत्नी को अभावग्रस्त अवस्था में छोड़कर चले गये थे। इसका उल्लेख नल दम्यन्ती आलेख की कथाओं में है।

नाग और गुप्तवंशः-

नरवर किले पर सर्वप्रथम छटवीं शताब्दी में नाग राजाओं ने राज्य किया था, जिनके नाम भीमनाग, खुर्जरनाग, वत्सनाग, स्कंधनाग, बृहस्पतिनाग, गणपतिनाग, व्याग्रनाग, वसुनाग, देवनाग प्रमुख थे, जिनके सिक्के भी यहाॅ पर प्राप्त होते हैं, जो काकिणी कहे जाते हैं।

छटवीं शताब्दी के आसपास समुद्र गुप्त ने नाग राजाओं का विनाश कर यहाॅ पर राज्य किया था दोनों हिन्दू राजाओं ने अनेक हिन्दू मंदिर बनवाये थे। समुद्र गुप्त विजय का उल्लेख म.प्र. के सागर जिले की बीना तहसील के ऐरन नामक स्थान पर प्राप्त शिलालेखों से होता है। इसके अलावा इलाहाबाद स्तम्भ में भी इसका उल्लेख किया गया है। यहाॅ पर अभी भी विष्णु व शिव मंदिर के प्रमाण मिलते हैं, जिसमें किले के गेट पर भगवान शिव व विष्णु की दो प्रतिमायें लगी हैं और शिव बारात, ब्रहमा, विष्णु, महेश के अवशेष देखें जा सकते हैं तथा रानी महल और अन्य इमारतों में मंदिर के खंबों का प्रयोग किया गया था, जिसे देखा जा सकता है, यह एक पूरा नगर था। किले के ऊपर से आज भी सम्पूर्ण नगर की नयनाभिराम छवि दिखाई देती है।

कछवाह, परिहार, तोमर वंश:-

12वी शताब्दी से यहाॅ पर कछवाह, परिहार, अलतमस, तोमर, सिकंदर लोधी, अकबर, औरंगजेब, सिंधियावंश के राजाओं ने राज्य किया था। 12वी शताब्दी में कछवाह राजाओं ने किले का निर्माण बडे स्तर पर किया था और उनकी कुलदेवी पसरा माता का मंदिर भी वहाॅ स्थित है। पसरा माता मंदिर की स्थापना सर्वप्रथम मुरैना के पास पाण्डवों द्वारा की गई थी, वह स्थान आज भी जिला मुरैना (म.प्र.) में स्थित है और पसरादेवी को बकही देवी के रूप में जाना जाता है।

नरवर में मुख्य रूप से कछवाह, परिहार, तोमर वंश के राजपूत राजाओं ने राज्य किया और 1508 में सिकंदर लोधी ने इस किले को फतेह किया। इस किले को फतेह कर उसने मंदिर में तोड़फोड़ की थी वह ग्वालियर किले को लूटने की योजना बना रहा था लेकिन 1517 ई. में उसकी मृत्यु नरवर किले में हुई, जिसकी मजार नरवर किले में सबसे ऊपर देखी जा सकती है। 1600 शताब्दी में मुगल शासक अकबर और उसके बाद 19वी शताब्दी तक मुगल राजाओं ने राज्य किया।

इस किले का व्यापारिक दृष्टि से महत्व था क्योंकि मालवा जाने का यह मुख्य मार्ग था इसलिए मुगल शासकों ने राजपूत राजाओं को हराकर इस किले पर विजय प्राप्त की थी।

19वी शताब्दी में मराठा राजाओं ने इसको मुगलों से प्राप्त किया था और बाद में मराठा राजाओं को हराकर सिंधिया राजवंश ने इस किले पर राज्य किया था, जिसका उल्लेख एक शिलालेख में किया गया है, जो किले में लगा हुआ है।

ःःःःः बनावट:ःःःः

यह किला लगाग 36 कि.मी.क्षेत्र में फैला हुआ है, जिसके 8 कि.मी.क्षेत्र में निर्माण कार्य दिखाई देता है। इसकी सीमा सिंध नदी के मुहाने पर बने गेट से आरंभ हो जाती है, जो समुद्र तल से 1600 फुट और बस्ती से 500 फुट की ऊॅचाई पर स्थित है। इसके शहर से चार प्रवेश द्वार हैं। इसके चार आहते हैं जो भजलोक आहाता, मदार आहाता, गूजर आहाता, ढोल आहाता है।

यह प्राकतिक रूप से मजबूत किला है जिसके दक्षिण में सिंध एवं पूर्व में अहीर नदी पश्चिम व उत्तर में हजीरा पहाड़ है, जो उसे प्राकृतिक सुरक्षा प्रदान करते हैं।

यह भारत का सबसे सुरक्षित अजर-अमर किलों में से एक है, जिसकी बनावट राजपूत और मुगल संरचना का सममिश्रण है।

1580 ई. में जब पुर्तगाल नागरिक जेसुईट अकबर से मिलने जा रहा था तो उसने इसका उल्लेख किया है। इसके अलावा विदेशी यात्री टिफिनथलर ने इसकी सुरक्षा का जिक्र करते हुए लिखा है कि नरवर किले को जीत पाना बेहद मुश्किल है, सुरक्षा की दृष्टि से इसका कोई जवाब नहीं है।

नरवर किला न सिर्फ अपनी विशालतम् मजबूती के लिए प्रसिद्व है बल्कि नल दम्यन्ती, आल्हा-ऊदल, मानसिंह, मृगनयनी, ढोलामारू की प्रेम कथाओं के लिए भी प्रसिद्व है। लोडी माता, मंशादेवी, पसरादेवी के लिए भी जाना जाता है।

ःःःःः तात्याटोपे से विश्वासघात:ःःःः

नरवर किला जहाॅ प्रेम वीरता कला-वैभव का प्रतीक है, वहीं यह विश्वासघात के लिए भी विश्व प्रसिद्व हैं। नरवर के राजपूत राजा मानसिंह ने अंग्रेजों से मिलकर स्वत्रंता सेनानी अपने गहरे मित्र तात्या टोपे को धोखे से किले में कैद कर लिया था और अंग्रेजों के सुपुर्द कर दिया था। दिनांक 16.04.1859 को जिला शिवपुरी (म.प्र.) की जेल में चार नंबर बैरक में जनरल नीड के द्वारा उन्हें दो बार फांसी पर लटकाया गया। तात्या टोपे की समाधि शिवपुरी जिले में बनी है।

ःःःःः आल्हा-ऊदल का संबंध:ःःःः

नरवर किले की कहानी 11वी सदी के आसपास के वीरयोद्वा आल्हा-ऊदल से भी जुडी हैं। आल्हा-ऊदल बुंदेलखंड राजा परमाल के सेनापति थे और उन्होंने नरवर पर चढाई करके यहाॅ के राजा की पुत्री फुलवा से ऊदल का विवाह कराया था। नरवर किले का उल्लेख आला काव्य में मौरामगढ के रूप में  मिलता है। आल्हा-ऊदल ने बंुदेलखंड के राजा परमाल के सेनापति के रूप में 52 लड़ाई लड़ी थी। ऊदल आल्हा से 12 वर्ष छोटे थे, इनका सबसे प्रसिद्व युद्व राजा पृथ्वीराज चैहान के साथ हुआ था जिसमें ऊदल शहीद हो गये थे तब आल्हा ने बदला लेने के लिए पृथ्वीराज चैहान की हत्या का प्रयास किया तो बाबा गोरखनाथ ने उन्हें बचा लिया तब से आल्हा बाबा गोरखनाथ के शिष्य हो गये।

किदवंतियों के अनुसार आल्हा आज भी अमर है और वह म.प्र. राज्य के सतना जिले में स्थित मैहर की शारदा देवी मंदिर में आज भी नियमित रूप से उनकी पूजा होती है। आल्हा-ऊदल की वीर गाथाओं को 1250 ई. में कवि जागनि ने कविता के रूप में ’’आल्हा काव्य’’ के रूप में समेटा था। आल्हा गायन अपनी वीरता जोश खरोश के लिए प्रसिद्व है।

बुंदेली और अवध भाषा में ढोलक झांझर, मंजीरे की संगत में जब बुलंद आवाज में आल्हा गाया जाता है तब सारा माहौल वीरता पूर्ण हो जाता है, युद्व के दृश्य आॅखों के सामने खड़े हो जाते हैं, लोगों की बांहे फड़कने लगती है। बंुदेलखंड के पानी की आग और तलवार का दम समझ में आने लगता है, यही कारण है कि आज 800 वर्ष बाद भी आल्हा गायन उसी रूप में विश्व प्रसिद्व है।

ःःःःः पिसनहारी गेट:ःःःः

नरवर किले में सबसे पहले सीढ़ियों को चढ़ने पर भगवान शंकर और विष्णु की अवतरित रूप की दो विशाल मूर्तियां दिखती है। उसके बाद पिसनहारी द्वार पड़ता है इसके मूल स्वरूप में तोडफोड कर मुगलशैली में पुनः निर्माण कर उसे अलमगिर दरवाजा कहा गया, जिसका नाम औरगंजेब ने बदलकर आलमगिर दरवाजा कर दिया था जिसके संबंध में एक शिलालेख वहाॅ पर लगा हुआ है। ऊपर जाने पर रानी महल में एक 15ग15 के कमरे में विशाल चक्की दिखाई देती है, इस चक्की को चलाने के लिए अनेक आदमी लगते थे, चक्की चलने की आवाज सुनकर किले के सिपाही व निवासी उठ जाते थे।

ःःःःः सैय्यदों का दरवाजा:ःःःः

सैय्यदों का दरवाजा जिसे पीरनपोर कहते है, इस दरवाजे के सामने सैय्यदों की कब्र हैं जिसपर अरबी भाषा में एक शिलालेख लगा है जिसमें शेरशाह सूरी के दुर्गपाल दिलावर खांन 1545 ई. का उल्लेख है, इसकी मरम्मत सैय्यदों के द्वारा करवाई गई इसलिए इसका नाम सैय्यदों का दरवाजा पडा। इसके पूर्व दिशा में कोतवाली भवन है जिसमें हिन्दू स्मारक के अवशेष प्रयोग में लाकर उसका पुनः निर्माण किया गया है।

ःःःःः हवा पौर:ःःः

हवा पौर नामक स्थान जहाॅ पर दरवाजा बना हुआ है, उसमें से प्रत्येक ऋतु में शीतल हवा आती है, इसलिए इसका नाम हवापौर प्रचलित हुआ। मराठों के नरवर विजय के पूर्व इसका नाम गौमुखी दरवाजा था। 1900 ई. में दौलतराव सिंधिया के सूबेदार अंबाजी इंगले ने इसका पुनः निर्माण करा दिया। हवापौर की बाॅये तरफ उदलबक्शी द्वारा निर्मित 13वी सदी का विष्णु मंदिर है।

                हवापौर का स्थापत्य मध्यकालीन राजपूत शैली का है। इसका मुख्य दरवाजा टूटाफूटा लेकिन विशालकाय है, इस पर सुरक्षा की दृष्टि से बल्लम कील आदि लगे हुए हैं। यहाॅ पर एक शिलालेख लगा हुआ है जिसमें इस बात का उल्लेख है कि 1900वी शताब्दी के आसपास मराठा राजाओं ने इस पर कब्जा कर इसका पुनः निर्माण कराया था, उसके बाद किसी भी राजाओं ने इस किले पर कोई भी निर्माण कार्य नहीं कराया।  

मुख्य दरवाजे से ऊपर जाने पर बाॅये ओर भगवान विष्णु के मंदिर से निकाली गई अग्निदेव व अन्य भगवानों की मूर्ति बाॅयी दीवार पर अंकित हैं। किले में ऊपर जाने पर दाॅयी ओर फुलवा महल और दम्यनती महल रेवा पटेला महल, सुनहरी महल, कैथलिक चैपल, हनुमानगढ़ी, विष्णु मंदिर, गणेश का स्थान और तोपखाना, घुडसाल स्थित है। बाॅयी ओर शराब की दुकान, तालाब, पीर का स्थान, कब्रिस्तान, एक छोटा कब्रिस्तान जिसमें कब्रे बनी हुई है। किले के बाॅयी तरह कचहरी महल को जाने की पंगडंडी है।

ःःःःः कचहरी महल:ःःःः

            कचहरी महल एक विशालकाय महल है जिसमें हिन्दू मंदिर की मैहराबों का उपयोग किया गया है। यहाॅ पर राजा के बैठने का ऊॅचा स्थान है तथा सामने जगह है जहाॅ दरबारी बैठक करते थे।

ःःःःः रानी महल/हमामखाना:ःःःः

छीपा महल जिसे रानी महल भी कहते हैं उसमें नहाने का हमामखाना और स्नानघर बने हैं जिसमें ठंडे व गर्म पानी का इंतजाम होता था। हमामखाने की टंकी में पानी सिंधी नदी से आठ कुॅओं व नौ बावड़ियों में लाया जाता था जहाॅ से पानी पाईप से लाया जाता था और रानी खाने में नहाने के स्थान पर पहुॅचाया जाता था। इसकी छत पर प्राकृतिक रूप से एक बडा छेद रोशनी के लिए बनाया गया है जिससे दिन व रात्रि में प्रकाश रहता है। दीवारों पर आले बने हैं जिसमें रोशनी हेतु दीए रखे जाते थे, यह वास्तुकला का एक अनुपम नमूना है जिसकी हुबहू नकल बाद में गोहद के किले में की गई थी।

कटोराताल के पास अश्वशाला है जिसके कंगुरे टूटे हुए हैं, इसके बाद नरवर सरोवर व पीर का सिद्व स्थान है। नरवर किले के पास अनेक हिन्दू और जैन मंदिर हैं जिनमें उरवाह गेट पर भगवान नेमीनाथ का प्राचीन जैन मंदिर है। इसके अलावा चैदह महादेव, टपकेश्वर, लोडीमाता, कालका माता के मंदिर है। सिंधनदी पर बने मढीखेडा डेम, करैरा वल्र्ड सेंचुरी व रानीघाटी भी आसपास स्थित हैं।

ःःःःः फुलवा:ःःःः

आल्हा-ऊदल के प्रमाण के रूप में उनका अखाड़ा है। फुलवा महल है, फुलवा विवाह मंडप है। फुलवा यहाॅ की राजकुमारी थी जो भारत की सबसे सुंदर कोमल नाजुक युवती थी जिसके बारे में कहा जाता है कि आल्हा ने ऊदल का विवाह फुलवा से करवाया था। आल्हा-ऊदल के द्वारा 52 युद्व किये गये जिनमें नरवर किले पर की गई चढ़ाई का भी उल्लेख है।

ःःःःः पसरादेवी:ःःःः

नरवर किले पर स्थित पसरादेवी की 06ग18 फुट की विशाल प्रतिमा है जिनके बारे में कहता जाता है कि ये कछवाह राजाओं की कुलदेवी थी और वे खजाने की रक्षा के लिए वहाॅ पसरकर बैठ गई थी वहाॅ स्थित कुण्ड में सिक्के डालने पर आवाज आती है इस मंदिर को संरक्षित कर दिया गया है और सुरक्षा की दृष्टि से दीवार बना दी गई है। नवरात्रि में हजारों भक्त दर्शन के लिए आते हैं।

ःःःःः लोडीमाता:ःःःः

परसादेवी मंदिर के पास लोडी माता का मंदिर है जिनके बारे में कहा जाता है कि यह नटनी तांत्रिक महिला थी जिन्होंने कच्चे धागे पर किला पार करने का प्रण लिया था और उसके बदले में वह अपने पति की रक्षा चाहती थी, लेकिन राजपाठ जाने के भ्रम में धागा काटकर उनकी हत्या कर दी गई, जिस स्थान पर वे गिरी वहाॅ पर एक चबूतरा बना है और उस स्थान को लोड़ी माता के रूप में पूजा जाता है। उनके संबंध में यह कहावत प्रसिद्व है कि ‘‘नरवर चढ़े न लोड़ी ऐरक पके न ईंट गुदनौटा भोजन बंूदी छपे न छींट’’। लोडी माता नरवर जिले के आसपास और विशेषकर नट समाज की देवी है जहाॅ प्रति वर्ष एक विशाल मेला लगता है।

ःःःःः आठ कुॅए नौ बावडी:ःःःः

नरवर किले और वहाॅ प्रजा के लिए पानी की भरपूर व्यवस्था थी। इतिहासकारों का कहना है कि यहाॅ पर कभी भी पानी की कमी के कारण अकाल नहीं पड़ा। यहाॅ पर अभी भी आठ कुॅऐ व नौ बावडी बनी है। यहाॅ पर 1600 पनिहारिन पानी भरती थी और किले में भेजती थी। सिंघ नदी का पानी कुॅओं और बावड़ियांें में लाया जाता था जिनका उपयोग आज भी हो रहा है और वर्तमान में बस्तिओं में कुॅओं से पानी की सप्लाई की जाती थी।

ःःःःः तोपखाना:ःःःः

राजदरबार के सामने एक विशाल तोपखाना बना हुआ है जिसमें आज भी लगभग 20 तोपें रखी हुई हैं जिसमें से एक तोप अष्टधातु की है, इसके बचोबीच भगवान गणेश का मंदिर बनाया गया है, यह स्थान भी दर्शनीय है।

ःःःःः मीना बाजार:ःःःः

नरवर में अभी भी मीना बाजार की 50 के लगभग दुकानें स्थित हैं जिनसे यह प्रतीत होता है कि यहाॅ पर बड़ी संख्या में व्यापारी आते थे और दुकाने व बाजार लगाये जाते थे, यह आज भी देखने लायक है। मीना बाजार के पास शराब विक्रय का स्थान है और उसके पास ही जेल की विशाल इमारत बनी हुई है तथा उसके पास ही एक कब्रिस्तान है जिसमें अनेक योद्वाओं की कब्रे बनी है तथा उसी के पास वहाॅ कोरियों की हवेली है जिससे यह प्रतीत होता है कि उस काल में पृथक व्यवसाय करने वाले पृथक निवास किया करते थे।

ःःःःः रानीघाटी:ःःःः

नरवर किले से लगभग 20 कि.मी. दूर जंगल में रानीघाटी नामक स्थान है, जिसके बारे में प्रसिद्व है कि यहाॅ राजा नल अपनी पत्नी दम्यन्ती के साथ वनवास काट रहे थे जब राजा नल से दम्यन्ती का दुख देखा नहीं गया तो वे यहाॅ पर साड़ी फाडकर दम्यन्ती से अलग होकर कहीं चले गये थे, बाद में दम्यन्ती वहाॅ से भटकर कर अपने पिता के घर पहुॅच गई थी और बहुत मुश्किल से नल और दम्यन्ती का मिलन हुआ था, ये रानीघाटी में आज भी पुरातन अवशेष असंरक्षित अवस्था में पड़े हैं जिनके संरक्षण की अत्यन्त आवश्यकता है।


 (उमेश कुमार गुप्ता)

    आई-8, वेदान्त बागसेवनियां

 जिला भोपाल (म.प्र.)




ःःःःः नरवर किले में दर्शनीय स्थल:ःःःः


         बांये दांये

1. कोरियों की हवेली 1. छीप महल

2. जेल भवन         2. लदाऊ बंगला

3. मंशादेवी मंदिर 3. चक्की महल

4. पसरादेवी मंदिर         4. कचहरी महल

5. आला-ऊदल का अखाड़ा 5. सिकंदर लोधी की मस्जिद

6. उरवाई दरवाजा         6. रामजानकी मंदिर

7. गौमुख 7. आठ कुॅऐ 09 बावड़ी

8. शराब की दुकान 8. फुलवा महल

9. तालाब 9. दम्यन्ती महल

10. पीर का स्थान 10. रेवा पटेला

11. कब्रिस्तान         11. सुनहरी महल

12. कचहरी महल की पंगडंडी 12. कैथलिक चैपाल

13. नल सरोवर 13. हनुमानगढी

14. मीना बाजार 14. विष्णु मंदिर

15. जैन मंदिर         15. गणेश का स्थान

16. तोपखाना         16. घुडसाल


      (उमेश कुमार गुप्ता)

    आई-8, वेदान्त बागसेवनियां

जिला भोपाल (म.प्र.)


लेबल:

शुक्रवार, 6 नवंबर 2020

नरवर किला narvar fort shivpuru mp

नरवर का किला अतिक्रमणकारियों की चपेट में

स्थितिः-

शिवपुरी स्थित ग्वालियर जिले से 70 कि.मी. दूर और शिवपुरी मुख्यालय से 40 कि.मी. दूर मध्यप्रदेश के दूसरे नंबर का ग्वालियर के बाद नरवर किला स्थ्ति है, जिसे पहले आक्रमणकारियों ने नष्ट किया और वर्तमान में अतिक्रमणकारी नष्ट कर रहे हैं। किले के चारों तरफ लोगों ने जगह घेरकर अवैध बस्ती बना ली हैं और किले को नष्ट करने का भरपूर प्रयास कर रहे हैं। किले की बाउंड्री के चारों ओर सुरक्षा के लिए खाई बनाई गई थी उसे पाटकर आसपास के निवासियों ने कब्जें कर निर्माण कर लिये हैं। इसके अलावा नरवर तहसील में जो भी ऐतहासिक इमारते थी उन्हें नष्ट किया जा रहा है, उन्हें तोड़कर अवैध रूप से उनपर कब्जा किया जा रहा है। दिनांक 28.10.2020 को दशहरा अवकाश पर नरवर किले को देखने पर ज्ञात हुआ कि यह बहुत व्यवस्थित, मजबूत और विशाल किला है, जिसने मेरे 30 वर्षो के पर्यटन काल में मैनें भारत के चित्तोड़गढ़, ग्वालियर, भिण्ड, असीरगढ, रायसेन, गोहद आदि विशाल किले फतेह किये गये हैं लेकिन इनमंें नरवर किले की संरचना ने मुझे सर्वाधिक प्रभावित किया है। 

इतिहासः-

 नरवर किला महाभारत कालीन किला है, इसका उल्लेख 12वी शताब्दी तक नलपुरा के रूप में मिलता है। यह राजा नल की राजधानी थी, जो राजा वीरसेन के पुत्र थे, यहां पर नल और दम्यंती की प्रेमकथा उपजी थी इसलिए आज भी यहां पर दम्यंती का महल, राजा की बैठक, राजदरबार आदि देखने को मिलते हैं। श्री हर्ष चरित्र, नौसंधि चरित्रम् में इसका उल्लेख निषध नगर या निषध देश के रूप में किया गया है। राजा नल जब चैपड़ में राजपाठ गवां बैठे थे तब यहाॅ पर राजा नल अपनी पत्नी दम्यन्ती के साथ निवास करते थे और इस दौरान वे रानीघाटी नामक स्थान पर अपनी पत्नी को अभावग्रस्त अवस्था में छोड़कर चले गये थे। इसका उल्लेख नल दम्यन्ती आलेख की कथाओं में है। 

नाग और गुप्तवंशः- 

 नरवर किले पर सर्वप्रथम छटवीं शताब्दी में नाग राजाओं ने राज्य किया था, जिनके नाम भीमनाग, खुर्जरनाग, वत्सनाग, स्कंधनाग, बृहस्पतिनाग, गणपतिनाग, व्याग्रनाग, वसुनाग, देवनाग प्रमुख थे, जिनके सिक्के भी यहाॅ पर प्राप्त होते हैं, जो काकिणी कहे जाते हैं। छटवीं शताब्दी के आसपास समुद्र गुप्त ने नाग राजाओं का विनाश कर यहाॅ पर राज्य किया था दोनों हिन्दू राजाओं ने अनेक हिन्दू मंदिर बनवाये थे। समुद्र गुप्त विजय का उल्लेख म.प्र. के सागर जिले की बीना तहसील के ऐरन नामक स्थान पर प्राप्त शिलालेखों से होता है। इसके अलावा इलाहाबाद स्तम्भ में भी इसका उल्लेख किया गया है। यहाॅ पर अभी भी विष्णु व शिव मंदिर के प्रमाण मिलते हैं, जिसमें किले के गेट पर भगवान शिव व विष्णु की दो प्रतिमायें लगी हैं और शिव बारात, ब्रहमा, विष्णु, महेश के अवशेष देखें जा सकते हैं तथा रानी महल और अन्य इमारतों में मंदिर के खंबों का प्रयोग किया गया था, जिसे देखा जा सकता है, यह एक पूरा नगर था। किले के ऊपर से आज भी सम्पूर्ण नगर की नयनाभिराम छवि दिखाई देती है। 

कछवाह, परिहार, तोमर वंश:-

 12वी शताब्दी से यहाॅ पर कछवाह, परिहार, अलतमस, तोमर, सिकंदर लोधी, अकबर, औरंगजेब, सिंधियावंश के राजाओं ने राज्य किया था। 12वी शताब्दी में कछवाह राजाओं ने किले का निर्माण बडे स्तर पर किया था और उनकी कुलदेवी पसरा माता का मंदिर भी वहाॅ स्थित है। पसरा माता मंदिर की स्थापना सर्वप्रथम मुरैना के पास पाण्डवों द्वारा की गई थी, वह स्थान आज भी जिला मुरैना में स्थित है और पसरादेवी को बकही देवी के रूप में जाना जाता है। नरवर में मुख्य रूप से कछवाह, परिहार, तोमर वंश के राजपूत राजाओं ने राज्य किया और 1508 में सिकंदर लोधी ने इस किले को फतेह किया। इस किले को फतेह कर उसने मंदिर में तोड़फोड़ की थी वह ग्वालियर किले को लूटने की योजना बना रहा था लेकिन 1517 ई. में उसकी मृत्यु नरवर किले में हुई, जिसकी मजार नरवर किले में सबसे ऊपर देखी जा सकती है। 1600 शताब्दी में मुगल शासक अकबर और उसके बाद 19वी शताब्दी तक मुगल राजाओं ने राज्य किया। इस किले का व्यापारिक दृष्टि से महत्व था क्योंकि मालवा जाने का यह मुख्य मार्ग था इसलिए मुगल शासकों ने राजपूत राजाओं को हराकर इस किले पर विजय प्राप्त की थी। 19वी शताब्दी में मराठा राजाओं ने उसको मुगलों से प्राप्त किया था और बाद में मराठा राजाओं को हराकर सिंधिया राजवंश ने इस किले पर राज्य किया था, जिसका उल्लेख एक शिलालेख में किया गया है, जो किले में लगी हुई है। 


 ःःःःः बनावट:ःःःः 

 यह किला लगाग 36 कि.मी.क्षेत्र में फैला हुआ है, जिसके 8 कि.मी.क्षेत्र में निर्माण कार्य दिखाई देता है। इसकी सीमा सिंध नदी के मुहाने पर बने गेट से आरंभ हो जाती है, जो समुद्र तल से 1600 फुट और बस्ती से 500 फुट की ऊॅचाई पर स्थित है। इसके शहर से चार प्रवेश द्वार हैं। इसके आहते हैं जो भजलोक आहाता, मदार आहाता, गूजर आहाता, ढोल आहाता है। यह प्राकतिक रूप से मजबूत किला है जिसके दक्षिण में सिंध एवं पूर्व में अहीर नदी पश्चिम व उत्तर में हजीरा पहाड़ है, जो उसे प्राकृतिक सुरक्षा प्रदान करते हैं। यह भारत का सबसे सुरक्षित अजर-अमर किलों में से एक है, जिसकी बनावट राजपूत और मुगल संरचना का सममिश्रण है। 1580 ई. में जब पुर्तगाल नागरिक जेसुईट अकबर से मिलने जा रहा था तो उसने इसका उल्लेख किया है। इसके अलावा विदेशी यात्री टिफिनथलर ने इसकी सुरक्षा का जिक्र करते हुए लिखा है कि नरवर किले को जीत पाना बेहद मुश्किल है। सुरक्षा की दृष्टि से इसका कोई जवाब नहीं है। नरवर किला न सिर्फ अपनी विशालतम् मजबूती के लिए प्रसिद्व है बल्कि नल दम्यन्ती, आल्हा-ऊदल, मानसिंह, मृगनयनी, ढोलामारू की प्रेम कथाओं के लिए भी प्रसिद्व है। लोडी माता, मंशादेवी, परसादेवी के लिए भी जाना जाता है।